बेठा हुआ इस आरज़ू में के सजेगी महफ़िल आज फिर एकबार क्यों ढल रही है शाम फिर क्यों है मेरा मन बेकरार जज़्बात उठ रहे है आज क्यों फिर मचलने को क्यों है मन भारी क्यों चाहता है दिल फिर धड़कने को लम्हों की बारिश रोके क्यों रुक नहीं रही आज क्यों उस बादल ने करवट बदल के मंजिल नई ढूंढ़ ली है आज तमन्नाओं का दौर फिर से आज रुक सा गया है आज फिर एक आंसू गिरते हुवे रुक सा गया है.
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