Monday, April 09, 2012

लम्हों की बारिश


बेठा हुआ इस आरज़ू में के सजेगी महफ़िल आज फिर एकबार
क्यों ढल रही है शाम फिर क्यों है मेरा मन बेकरार
जज़्बात उठ रहे है आज क्यों फिर मचलने को
क्यों है मन भारी क्यों चाहता है दिल फिर धड़कने को
लम्हों की बारिश रोके क्यों रुक नहीं रही आज
क्यों उस बादल ने करवट बदल के मंजिल नई ढूंढ़ ली है आज
तमन्नाओं का दौर फिर से आज रुक सा गया है
आज फिर एक आंसू गिरते हुवे रुक सा गया है.